धरमजयगढ़ विधानसभा में कौन किस पर भारी ?

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डेस्क खबर खुलेआम

दोनों प्रत्याशियों के आगे क्या-क्या रहेंगी चुनौतियाँ ?

कांग्रेस के गढ़ में क्या पुनः खिल पाएगा कमल ?

घरघोड़ा/ लोकतंत्र का त्योहार निकट ही है, इसलिए सभी पार्टियां अब चुनावी मोड पर आ गई हैं। एक ओर भाजपा ने अपने कमजोर माने जाने वाले 21 सीटों पर प्रत्याशी उतार कर बढ़त हासिल कर ली है और आजकल में दूसरी सूची जारी करने की तैयारी में है। तो दूसरी ओर कांग्रेस ने इस बार सभी प्रत्याशियों से विधिवत आवेदन पत्र जमा करवा लिया है। अब कांग्रेस की यह मजबूरी बन गई है कि इन 21 सीटों पर प्रत्याशी जल्द खड़ा करे।

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धरमजयगढ़ विधानसभा में कांग्रेस पार्टी से वर्तमान विधायक लालजीत सिंह राठिया का टिकट लगभग फाइनल माना जा रहा है। परंतु पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष रोहिणी प्रताप के भाई स्वराज राठिया की दावेदारी से कांग्रेसियों में नई बहस छिड़ गई है। बता दें कि रोहिणी प्रताप की मृत्यु के बाद बांकारूमा जिला पंचायत सदस्य के लिए हुए उपचुनाव में स्वराज राठिया पार्टी के स्वाभाविक दावेदार थे। परंतु उन्हें दरकिनार कर दिया गया, इससे बौखलाए स्वराज राठिया निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में कूद पड़े, जहां उन्हें 5000 से अधिक वोट हासिल हुए थे। माना जाता है कि बांकारुमा और सिसरिंगा क्षेत्र में स्वराज परिवार का काफी दबदबा है। ऐसे में लालजीत को स्वराज राठिया परिवार की नाराजगी भारी पड़ सकती है। धरमजयगढ़ विधानसभा का दूसरा प्रमुख क्षेत्र घरघोड़ा है, यहां की स्थिति भी लालजीत के लिए अच्छी नहीं है। पिछले जिला पंचायत चुनाव में घरघोड़ा से कांग्रेस प्रत्याशी को भीतरघात कर हराने के आरोप भी स्थानीय विधायक पर लगे थे, तो नगर पंचायत घरघोड़ा में पूर्ण बहुमत होने के बाद भी अध्यक्ष की सीट भाजपा की झोली में चली गई। उस चुनाव में घरघोड़ा के कांग्रेसी पार्षदों ने जमकर क्रास वोटिंग की थी, जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश भर में हुई। इस घटना से लालजीत राठिया की काफी किरकिरी हुई और उन पर निष्क्रियता के आरोप भी लगे थे। फिर जनपद पंचायत घरघोड़ा के अध्यक्ष पद के निर्वाचन में भी यही हाल हुआ। जनपद पंचायत घरघोड़ा के अध्यक्ष पद के लिए जिस प्रत्याशी को कांग्रेस अपना बता रही थी, उसने अध्यक्ष बनते ही भाजपा का दामन थाम लिया। देखा जाए तो जिला पंचायत, जनपद पंचायत और नगर पंचायत के तीनों चुनाव में कांग्रेस को घरघोड़ा में मुंह की खानी पड़ी है। ऐसे में लालजीत की दमदारी पर सवाल उठना लाजमी है। दूसरी तरफ धरमजयगढ़ नगर पंचायत में अविश्वास प्रस्ताव पास होने का ठीकरा भी लालजीत के सिर ही फोड़ा गया। आलम ये है कि आज धरमजयगढ़ नगर में पुराने कांग्रेसियों का एक प्रभावशाली तबका लालजीत से खासा नाराज़ चल रहा है। धरमजयगढ़ नगर में यह चर्चा व्याप्त है कि इस बार नगर में कांग्रेस को जमकर भीतरघात का सामना करना पड़ेगा।

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दूसरी तरफ भाजपा ने धरमजयगढ़ विधानसभा में कई गुटों में बँटे कार्यकर्ताओं को एक करना शुरू कर दिया है। यहां शुरू से ही प्रमुख दावेदार माने जाने वाले हरिश्चंद्र राठिया को भाजपा ने चुनाव से 3 महीने पहले ही मैदान में उतार दिया है। इधर जोश से लबरेज हरिश्चंद्र ने पिछले दिनों घरघोड़ा क्षेत्र से ही अपने प्रचार अभियान की शुरुआत भी कर दी है। परंतु भाजपा के अंदरखाने सब कुछ ठीक चल रहा है, ऐसा भी नहीं है। बताया जाता है कि धरमजयगढ़ में भाजपा से राधेश्याम राठिया, तारा सिंह राठिया, हरिश्चंद्र राठिया, संतोष राठिया, लीनव राठिया, रामनाथ बैगा सहित दर्जनभर दावेदार थे। परंतु हरिश्चंद्र के नाम की घोषणा होते ही सबको सांप सूंघ गया। यहां से प्रबल दावेदार माने जाने वाले एक नेता के तो गहरे सदमे में चले जाने की खबर भी मीडिया में आम हो चुकी है। वहीं दूसरे दावेदार भी भीतर ही भीतर कुढ़ने लगे हैं। सूत्र बताते हैं कि भाजपा का एक धड़ा हरिश्चंद्र को साफ़ छवि का बताने में जुटा हुआ है तो वहीं असंतुष्ट खेमा उनके पुराने प्रकरणों को सार्वजनिक करने की फिराक में लगा हुआ है। सूत्र यह भी बताते हैं कि बांकारूमा जिला पंचायत के उपचुनाव में भाजपा हरिश्चंद्र को बतौर प्रत्याशी उतारना चाह रही थी, परंतु हरिश्चंद्र की चुनाव लड़ने से इनकार करने पर मजबूरी में एक दूसरे प्रत्याशी को चुनाव लड़ाया गया, जिसमें भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इसीलिए कुछ असंतुष्ट भाजपाई दबी जुबान से यह कहते हुए नज़र आ रहे हैं कि जो नेता जिला पंचायत का चुनाव लड़ने से पीछे हट गया, उसे पार्टी ने विधानसभा के लिए कैसे उपयुक्त मान लिया ? दूसरी ओर भाजपा पर परिवारवाद का आरोप भी लग रहा है, क्योंकि हरिश्चंद्र पूर्व विधायक ओमप्रकाश राठिया के भांजे हैं। 27 वर्षों तक लगातार धरमजयगढ़ से विधायक चुने जाने वाले कद्दावर आदिवासी नेता चनेशराम राठिया को पहली बार वर्ष 2003 में हराकर ओमप्रकाश ने यहां भाजपा का खाता खोला था, वहीं दूसरी बार वर्ष 2008 में बमुश्किल ही जीत पाए। फिर 2013 में कांग्रेस ने चनेशराम के पुत्र लालजीत को आजमाया तो लालजीत ने जीत कर धरमजयगढ़ सीट पर पुनः कांग्रेस का परचम लहरा दिया। अपने पहले ही चुनाव में लालजीत ने ओमप्रकाश राठिया को 20 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। फिर वर्ष 2018 के चुनाव में ओमप्रकाश की बहू लीनव राठिया को 40 हजार से अधिक मतों से हराकर दूसरी बार विधायक बने। इस बार भी ओमप्रकाश के परिवार से ही भाजपा ने प्रत्याशी चुना है, ऐसे में भाजपा पर परिवारवाद का आरोप लगना तो तय है। फिलहाल भाजपा और हरिश्चंद्र को घरघोड़ा क्षेत्र के दो मजबूत नेता राधेश्याम राठिया और संतोष राठिया के असंतोष को साधना जरूरी है, तो वहीं धरमजयगढ़ के छाल क्षेत्र से आने वाले अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष और राठिया समाज के प्रदेश संयोजक तारा सिंह राठिया का मानमनौव्वल किया जाना भी बेहद जरूरी दिखाई पड़ रहा है।

उल्लेखनीय है कि इस बार खरसिया के साथ-साथ धर्मजयगढ़ को भी हॉट सीट माना जा रहा है। यहां के परिणाम पर पूरे प्रदेश की नजरें टिकी रहेंगी। बहरहाल भाजपा का नया चेहरा होने से ग्रामीण अंचल के तटस्थ जनप्रतिनिधि भी हरिश्चंद्र की ओर आकर्षित हो रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि अगर भाजपा अपने रूठों को मनाने में कामयाब हो जाती है तो धरमजयगढ़ से इस बार लालजीत के जीत की राह आसान नहीं होगी।

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