
विभाग के वरिष्ठ अफसरों पर विपत्ति आने के बाद छोटे कर्मचारी को बली का बकरा बनाना आखिर कहां तक न्यायोचित है ?

अक्सर बेशतर देखा जाता है के,सरकारी महकमों के आला अधिकारियों के ऊपर जब भी कोई भ्रष्टाचार करने या फिर अन्य कोई भी बड़ा आरोप लगते ही वे,अपने मातहत छोटे कर्मचारी के ऊपर निलंबन की गाज गिराकर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं।
ऐसे में स्वाभाविक रूप से बुद्धि जीवियों के मानस पटल पर ये बात कौंध जाती है के ,आखिर अपने पाप का घड़ा किसी और के सिर पर फोड़ना कहां तक न्यायोचित है?
बहरहाल यहां ताजा मामला धरमजयगढ़ वन विभाग का है जहां आला अधिकारियों ने अपनी गलती और नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए एक छोटे कर्मचारी को आनन फानन में बर्खास्त कर दिया है ।जिसकी आलोचना नगर सहित ग्रामीण जनो द्वारा जमकर की जा रही है।
खबर है के ,दबी जुबान से पूरे वन मंडल में यह बात गरमागरम चर्चा का विषय बना हुआ है,के अपनी शाख बचाने के लिए विभाग के उच्च अधिकारी ने एक छोटे कर्मचारी को निलंबित कर अच्छा कार्य नहीं किया है।जबकि अधिकारी ने उसे वन विभाग विश्राम गृह का भी अतिरिक्त प्रभार देकर रखा था। निलंबित वन रक्षक अपने बीट के अलावा विश्राम गृह का कार्य भी देखता था। निलंबित वन रक्षक की माने तो रक्षा बंधन पर जब सभी कर्मचारी छुट्टी पर थे ऐसे आलम में वह दिन रात पूरी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी कर रहा था।हाथी की मौत का वह अकेला जिम्मेदार नहीं है ,अगर बर्खास्त करने से हाथी की जान वापस आ सकती है तो सबसे पहले विभाग के तमाम बड़े ओहदेदार को बर्खास्त करना चाहिए जिनके पास पावर है।एक अकेला वन रक्षक विशालकाय हाथी को कैसे भगा सकता है? जबकि उसे लकड़ी का एक डंडा भी विभाग द्वारा नही दिया जाता है।ऐसे में रातों रात यदि कोई उसमे करेंट तार लगा देता है, जिसके कारण उसकी जद में आकर हाथी की मौत हो जाती है तो इसमें वन रक्षक को दोषी मानना कहां तक उचित है ?वन विभाग के बड़े अधिकारी यदि पूरी ईमानदारी से कार्य करते तो आए दिन हाथी के हमले से बेगुनाह ग्रामीणों की जान नही जाती।विभाग के अफसरों की लापरवाही का नतीजा है के काफी लंबे समय से मानव और हाथी के बीच लगातार संघर्ष जारी है।हाथियों से लगातार क्षेत्र में ग्रामीणों के जान माल की नुकसानी हो रही है।इस दिशा में वनविभाग की सारी योजनाएं पूरी तरह से नाकाम साबित हुए हैं,आखिर इसकी जिम्मेदारी किसकी है।विभाग की योजना अगर सही ढंग की होती तो आज तक इतने हाथी मारे जाते और न ही जन हानि होती।
सर्व विदित है के 21 अगस्त की रात्रि ग्राम पोटिया मे बिजली करंट से हुए हाथी की मौत मामले में धरमजयगढ़ वनमण्डल के आला अधिकारी ने वहां के बीट गार्ड सतकुमार चौहान को निलंबन का आदेश जारी कर दिया ।बताते चलें 21 अगस्त को पोटिया जंगल किनारे खेत में लगे फसल की सुरक्षा के लिए खेत के मालिक ने बिजली तार लगा दिया था,जहां करेंट की चपेट में आने से एक हाथी की मौत हो गई थी।घटना के बाद वाइल्ड लाइफ के बड़े अफसर भी लोक पर जायजा लेने पहुंचे थे ,जिसके बाद विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए, संबंधित बीट के नाका पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए उसे आनन फानन में बर्खास्त कर दिया।अब ये मामला तूल पकड़ ने लगा है के बड़े अधिकारियों की गलती छुपा दी जाती है ,और छोटे कर्मचारी जो बेचारा ईमानदारी से बड़े अफसरों के दिशा निर्देश पर अपने कार्य को अंजाम देता है ,उसे निपटा दिया जाता है।अक्सर देखने मिलता है के सरकारी महकमो में आला अधिकारियों की मनमानी चरम पर होती है, और छोटे मुलाजिम को प्रताड़ित किए जाने बावजूद उसकी आवाज नककार खाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है ,उसके पक्ष में बोलने वाला कोई नहीं होता।वनविभाग के आला अधिकारी यदि बीट गार्ड का पक्ष गंभीरता से सुन समझ लेते तो शायद उस पर निलंबन की कार्यवाही नही होती!उम्मीद है के विभाग में ऊंचे पदों पर आसीन सत्ताधारी इस पर बारीकी से संज्ञान लेंगे और निलंबित वन रक्षक को शीघ्र न्याय जरूर मिलेगा।वन विभाग के वरिष्ठ जिम्मेदार अफसरों पर ये जुमला बिलकुल सही बैठता है,के हमने गैरों पर इल्जम लगा रखे हैं ,और खुद अपने दामन में दाग छुपा रखे हैं।

