
desk khabr khuleaaam
कोण्डागांव / “जनता की सेवा नहीं, जेब भरना बना मकसद” — यह कहावत उस वक्त चरितार्थ हो गई जब कोण्डागांव जिले के नजूल शाखा में पदस्थ तहसीलदार दिनेश सिंह ठाकुर को 15,000 रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ लिया गया। एफटी करप्शन ब्यूरो द्वारा इस कार्रवाई से प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मच गया है। शिकायतकर्ता राधाकृष्ण देवांगन ने जनहित में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसके पुश्तैनी जमीन पर अवैध कब्जा हटाने और सीमांकन के आदेश देने के एवज में तहसीलदार ने 15 हजार रुपये की घूस मांगी थी। पीड़ित ने रिश्वत नहीं दी, बल्कि सिस्टम की गंदगी को उजागर करने का साहस दिखाया। ट्रैप की योजना बनी और वही हुआ जो अक्सर बड़े-बड़ों के साथ नहीं होता — अफसर पकड़ लिया गया। यह कोई अकेली घटना नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर एक करारा तमाचा है। जिन अफसरों को न्याय दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वे न्याय को बाजार में बेचने निकले हैं। यह वही अफसर है, जो अपने कार्यालय में बैठकर ‘ईमानदारी’ की दुहाई देता था और पीठ पीछे जेब गरम करने में लगा था।
प्रशासनिक पतन या रिश्वत का रिवाज?….क्या कोण्डागांव जैसे आदिवासी और पिछड़े जिलों में अब भी जनता को न्याय पैसे से खरीदना पड़ेगा? क्या सरकारी बाबुओं की आत्मा मर चुकी है? यह घटना केवल एक व्यक्ति नहीं, एक पूरी व्यवस्था की सड़ांध का परिचय है।
कड़ी कार्रवाई की मांग …. जनता अब केवल गिरफ्तारी नहीं चाहती, बल्कि चाहती है निलंबन, विभागीय जांच और सख्त सजा — ताकि बाकी रिश्वतखोरों को भी सबक मिले। यदि ऐसे मामलों में सरकार चुप रही, तो यह चुप्पी भी एक प्रकार की मिलीभगत मानी जाएगी।