


चंद्रशेखर जायसवाल लैलूंगा की रिपोर्ट
लैलूंग :- रायगढ़ जिले के लैलूंगा नगर की हाई प्रोफाइल 170-ख का मामला आदिवासी भूमि स्वामी हक की जमीन जो कि तहसील ऑफिस लैलूंगा से मात्र सौ मीटर की दूरी पर स्थित भूमि खसरा नंबर 520/12 रकबा 0.030 हेक्टेयर पर हेमलाल साहू (सेवा निवृत पटवारी) के द्वारा जबरन कब्जा कर पक्का मकान बनाकर निवास कर रहा है। जिसके संबंध में विगत 10 वर्षों से लगातार भिन्न – भिन्न न्यायालयों में प्रकरण चलने के पश्चात अंततः छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर से पारित आदेश दिनांक 07/07/2021 के अंतर्गत आवेदिका श्रीमती सोनामती पति सुखराम उरांव के पक्ष में अनविभागीय अधिकारी घरघोड़ा के फैसले को यथावत रखते हुए अनावेदक पक्ष के यात्रा को खारिज कर आनवेदिका सोनामती उरांव के पक्ष में फैसला दिया गया है। जिस पर स्नथानीय अनु विभागीय दण्डाधिकारी (रा.) न्यायालय लैलूंगा के समक्ष विधिवत् कब्जा दिलाये जाने हेतु निवेदन किए जाने पर अनु विभागीय अधिकारी ( रा.) न्यायालय लैलूंगा ने तहसीलदार से सोनामती उरांव को कब्जा दिलाये जाने हेतु दिनांक 01/09/2021 को राजस्व निरीक्षक लैलूंगा एवं हल्का पटवारी तथा माल जमादार को धारा 170 – ख के तहत कब्जा वापस दिलाये जाने की कार्यवाही के लिए आदेश दिया गया। जिसमें दिनांक 14/09/2021 को कार्यालय राजस्व निरीक्षक लैलूंगा के द्वारा आवेदिका सोनामती पति सुखराम उराँव, जाति – उराँव ग्राम – लैलूंगा, जिला – रायगढ़ (छ.ग.) में स्थित भूमि खसरा नम्बर 520/12 रकबा 0.030 हेक्टेयर को राजस्व दल के द्वारा दिनांक 16/9/21 को सुबह 10:30 बजे से कार्य पूर्ण होते तक अनिवार्य रूप से उपस्थित रहने को कहा गया था, जहाँ कब्जा सौंपने की कार्यवाही किया था। परन्तु संबंधित राजस्व निरीक्षक एवं संबंधित हल्का पटवारी व माल जमादार के द्वारा बिना कुछ कार्यवाही किए लोगों से घूम – घूम कर पंचनामा में हस्ताक्षर करवाया जाकर खाना पूर्ति किया गया है। जिसके बाद में आवेदिका सोनामती ने अनु विभागीय अधिकारी (रा.) न्यायालय लैलूंगा को तथा पुलिस थाना लैलूंगा को विधिवत् सूचना आवेदन पत्र देकर तहसील कार्यालय के सामने दिनांक 17/9/21 से अनिश्चितकालिन भूख हड़ताल पर बैठ गई है। अब यह देखना होगा कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी यदि किसी गरीब आदिवासी, बेसहारा, बुजुर्ग महिला लगभग 80-82 वर्ष कि उम्र में आदिवासी महिला अपने कह अधिकार की भूमि को पाने के लिए दर – दर की ठोकर खा रही है। जो अंत में थक हार कार इंसाफ पाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठने को विवश है। जबकि सत्य की जीत हाई कोर्ट से हुई है और हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद अधिकारी/ कर्मचारी कार्यवाही करने में आनाकानी कर रहे हैं। जिसके कारण क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के लोग भी अब उद्देलित होने लगे हैं। जहाँ कभी भी आदिवासी समाज के लोग एकजुट होकर आंदोलन कर सकते हैं।


