पटवारी बनीं ‘कैशियर’ – हल्का में जनता भटक रहे … पटवारी पर लगे गंभीर आरोप … वीडियो हो रहा वायरल , देखें पुरी वीडियो

Advertisement Carousel
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

खबर खुलेआम

पूर्व में भी तत्कालीन पटवारी का पैसा लेते वीडियो वायरल हुआ जिसमें राजस्व अधिकारी ने तत्काल पटवारी को हटाया

लैलूंगा के हल्का नंबर 23 में इन दिनों सरकारी सिस्टम की नहीं, बल्कि ‘कैश सिस्टम’ की चर्चा है। यहां के ग्रामीण कहते हैं, “सरकारी दफ्तर नहीं, टप्पलिया की दुकान है – पटवारी मेडम बैठती हैं, और रेट लिस्ट के बिना कोई सेवा नहीं मिलती!” जी हां, हम बात कर रहे हैं हल्का 23 की ‘दिग्गज’ पटवारी संगीता गुप्ता का नाम सुनते ही लोगों की आंखों में ग़ुस्सा और जेब में कंपन आ जाता है। गायब पटवारी, परेशान जनता जिनकी नियुक्ति कोड़केल, सुबरा और गेरूपानी जैसे गांवों के लिए हुई थी, वे महीनों तक गायब रहती हैं। कोई उन्हें ढूंढे तो ढूंढता रह जाए

जनपद सदस्य कल्पना भोय का आरोप है कि यह ‘गायब पटवारी’ कभी पंद्रह दिन, कभी पूरा महीना लुप्त रहती हैं। सूचना? अनुपलब्ध। कारण? शायद चंद्रमा की यत्रा पर हों !”हमें अपने खेत की बंटवारे की नकल चाहिए थी, लेकिन दो महीनों से सिर्फ ऑफिस के चक्कर और मेडम के दर्शन के इंतजार में हैं,” –

एक ग्रामीण ने कहा, मानो सरकारी सेवा नहीं, तीरथ यात्रा हो।काम चाहिए? पहले ‘चाय-पानी’ दिखाओ!गायब रहने के अलावा, आरोपों की दूसरी खेप है—खुलेआम पैसे की मांग। ‘चाय-पानी’ का शिष्ट नाम लेकर, असल में ‘बिना पगार के घूस’ ली जाती है। पटवारी महोदया कोई काम मुफ्त में नहीं करतीं। नामांतरण? नक्शा? विरासत? सबका रेट तय है, जैसे कोई सरकारी फाइल नहीं, सब्ज़ी मंडी हो।”एक किसान को दफ्तर में बुलाया, दो घंटे बैठाया, फिर अलग कमरे में ले जाकर बोलीं – ‘अगर जल्दी काम चाहिए तो थोड़ा सहयोग करना पड़ेगा’। सहयोग का मतलब सब समझते हैं, लेकिन ये सरकारी अफसर जब ‘विक्रेता’ बन जाए, तो जनता कहां जाए?” – कल्पना भोय का दर्द छलक पड़ा।सरकारी दफ्तर या रिश्वत केंद्र?ग्रामीणों ने अब खुलकर कह दिया है – यह कार्यालय अब कार्यालय नहीं, दुकान है। फर्क बस इतना है कि यहां बिल नहीं मिलता, बल्कि खामोशी से पैसा लिया जाता है और काम की ‘डिलीवरी’ उसी हिसाब से होती है।”हम गांव वाले तो अब यही मानते हैं कि हमारे पटवारी मेडम, पद पर नहीं, पोस्ट पर हैं – पैसे पोस्ट करो, फिर देखो काम कैसे उड़कर होता है।” – यह कहना है गेरूपानी निवासी का, जिनकी विरासत की फाइल 2 महीने से अटकी हुई है।प्रशासन सो रहा है, या कुछ और चल रहा है?सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब शिकायतें महीनों से हैं, तो तहसील प्रशासन ने अब तक कार्यवाही क्यों नहीं की? क्या पटवारी मेडम के पीछे कोई ‘बड़ा हाथ’ है? या फिर यह चुप्पी प्रशासनिक ‘डील’ का संकेत है?”” – कल्पना भोय ने अपने ज्ञापन में कहा है कि अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे।जनता का अल्टीमेटम – या कार्यवाही हो या भूख हड़ताल!जनता का कहना है कि अब अगर 15 दिनों में ठोस कार्यवाही नहीं हुई, तो भूख हड़ताल, ग्राम सभा के बहिष्कार और बड़ा आंदोलन तय है।”अब हम चुप नहीं बैठेंगे। ये पद किसी की जागीर नहीं है, और ये सेवा किसी की निजी संपत्ति नहीं है।” – गेरूपानी की सरपंच निर्मला एक्का का तेवर तल्ख था।

चुप्पी में छिपा जवाब

जब संवाददाता ने दूरभाष के माध्यम से पटवारी संगीता गुप्ता से संपर्क करने की कोशिश की, तो जवाब आया – “अभी कुछ नहीं कह सकती, मिलकर बात करते हैं।” यानी जो जवाब फाइलों में नहीं मिलता, वही जवाब सीधे संवाद में भी मिला – “फिलहाल अनुपलब्ध!” क्या हल्का 23 में कभी ‘हल’ निकलेगा?यह मामला अब किसी एक कर्मचारी की लापरवाही से बढ़कर, पूरी व्यवस्था की पोल खोलने वाला बन चुका है। एक ओर जनता है जो अपने अधिकारों के लिए चिल्ला रही है, और दूसरी ओर सरकारी अमला है जो फाइलों में आराम कर रहा है।जब पद पर बैठा अधिकारी ही ‘सेवा’ को ‘सेल’ बना दे, तो लोकतंत्र की रीढ़ टूटती है। ऐसे में सवाल है:क्या संगीता गुप्ता पर कोई कार्यवाही होगी?क्या प्रशासन जवाब देगा?क्या सिस्टम में अब भी शर्म बची है?या फिर, हर बार की तरह – कुछ कागजों पर स्याही बहेगी, कुछ ज्ञापन फाइलों में सड़ेंगे, और पटवारी मेडम अगले त्यौहार तक ‘ट्रांसफर’ की मिठाई खाती रहेंगी।अंत में…जिसे जनता ने अधिकारी बनाया, उसने जनता को ही ग्राहक समझ लिया।अब समय आ गया है कि सिस्टम को झकझोरा जाए, क्योंकि यह सिर्फ पटवारी संगीता गुप्ता का मामला नहीं, यह हर उस गाँव की कहानी है जहां सरकारी दफ्तर अब ‘दफ्तर’ नहीं, ‘दरबार’ बन चुके हैं—जहां घूस की चाय के बिना कोई कागज नहीं चलता। जवाब चाहिए, और अब सिर्फ जवाब नहीं—कार्यवाही चाहिए।किया कहते है राजस्व अधिकारी मेरे पास शिकायत आया है अभी वीडियो नही देख पाई हु अभी फील्ड में हु

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment