

खबर खुलेआम
राजू यादव धरमजयगढ़ संलग्नकर्ता
धरमजयगढ़। विकासखंड धरमजयगढ़ के ग्राम पंचायतों में सामाजिक अंकेक्षण का तंत्र आज एक खोखला ढांचा बनकर रह गया है। बता दें,जिन बैठकों का उद्देश्य था—गांववासियों को पारदर्शिता का भरोसा देना, योजनाओं का सच उजागर करना और ग्राम स्तर पर जिम्मेदारी तय करना—वही ग्राम पंचायतों में अब महज औपचारिकता, दिखावा और कागज़ी खानापूर्ति बनकर रह गया है।बता दें,जानकारी के अनुसार कई ग्राम पंचायतों में सामाजिक अंकेक्षण प्रदाताओं द्वारा बिना कोरम पूरा किए, बिना दंडादेश अधिकारी की मौजूदगी के ही ग्राम सभा पूरी कर दी जाती है। विडंबना यह कि अधिकतर ग्राम सभाएं मात्र 20–25 ग्रामीणों की मौजूदगी में निपटा दी जाती हैं। और हैरानी तो तब होती है जब कई पंचायतों में ग्राम पंचायत सचिव तक उपस्थित नहीं रहता, फिर भी सामाजिक अंकेक्षण की “कार्यवाही पूर्ण” घोषित कर दी जाती है।वहीं हाल ही की एक घटना तो पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान लगाती है—जहां कार्रवाई पंजी में ग्रामीणों के हस्ताक्षर पहले से ले लिए गए और ग्राम पंचायत सचिव शराब के नशे में ग्राम सभा में पहुंचा। वहीं नियम, प्रक्रिया और गरिमा—सभी को वहीं ध्वस्त कर दिया गया।और हाल ही में बीते दिन ग्राम पंचायत सागरपुर के आश्रित गांव बागड़ाही में तो पारदर्शिता की पराकाष्ठा यह रही कि ग्राम पंचायत भवन को छोड़कर प्राथमिक शाला बागडाही के बंद कमरे में ग्राम सभा संपन्न कर दी गई। वहीं ग्रामीणों के बताए अनुसार कोरा कार्यवाही पंजी में ग्रामीणों के दस्तखत लिए गए, साथ पंचायत सचिव का शराब पीकर ग्राम सभा में शामिल होना। लेकिन वहीं सवाल उठता है,बंद कमरे में हुई ग्राम सभा किसके लिए थी? जनता के लिए या व्यवस्था को बचाने के लिए?वहीं सूत्रों के अनुसार कई पंचायतों में अंकेक्षण प्रदाताओं, सचिवों, रोजगार सहायकों और सरपंचों के बीच पहले से ही तालमेल बैठा लिया जाता है। गांव में वास्तविक स्थिति चाहे जितनी जर्जर हो—रिपोर्ट में सब “उत्तम” दर्शाया जाता है। ऊपर भेजी गई फाइलें चमकदार, लेकिन धरातल पर हालात बदहाल। यही कारण है कि विकासखंड की रिपोर्ट हर बार “बेहतर” आती है, मानो इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार नाम की कोई चीज़ ही नहीं। वहीं आए दिन सोशल मीडिया और अखबारों में कई बार मामलों को उजागर किया गया, लेकिन उच्च अधिकारियों की चुप्पी आज भी उतनी ही गहरी है। जांच का आश्वासन तो मिलता है, पर वह आश्वासन भी केवल शब्दों की खुराक है, जिसे सुनकर ग्रामीणों के भरोसे की लौ और मंद पड़ जाती है।लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यही है—जब हर ग्राम पंचायत की रिपोर्ट बेदाग आती है, तो फिर गांवों की हकीकत इतनी बदहाल क्यों है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अंकेक्षण का यह तंत्र सच को छिपाने का मजबूत कवच बन चुका है? और वहीं धरमजयगढ़ का ग्रामीण परिवेश आज इसी सवाल से जूझ रहा है, क्या सामाजिक अंकेक्षण पारदर्शिता लाने के लिए है, या पारदर्शिता के नाम पर भ्रष्टाचार को ढंकने के लिए?












