स्कली – शिक्षक युक्तियुक्तकरण या शिक्षा गुणवत्ता से मज़ाक ?

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डेस्क खबर खुलेआम

छत्तीसगढ़ शासन, स्कूल शिक्षा विभाग, मंत्रालय, महानदी भवन, नवा रायपुर, अटल नगर- 492002 के निर्देश क्रमांक एफ 2- 24/2024/20- तीन, नवा रायपुर, दिनाँक- 02/08/2024 के माध्यम से स्कूलों एवं शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण के लिए दिशानिर्देश जारी किया गया है। जिसके अनुसार ऐसे प्राथमिक शाला जिनकी दर्ज संख्या 10 से कम है, उन्हें पास की प्राथमिक शाला में मर्ज किए जाएगा, यह स्वागतेय है। कम दर्ज वाली माध्यमिक शालाओं में भी प्रधान पाठक का 01 पद एवं शिक्षकों के 03 पद पर्याप्त हैं, परंतु प्राथमिक शालाओं में जहाँ 05 कक्षाएं एवं बालवाड़ी संचालित होती हैं वहाँ पर 60 दर्ज संख्या तक सिर्फ 02 शिक्षक की पदस्थापना से कार्यों का बोझ अत्यधिक बढ़ जाएगा तथा कालखण्ड के माध्यम से अध्यापन कार्य असंभव हो जाएगा। प्राथमिक शालाओं में कक्षा 1 में 3 विषय, कक्षा 2 में 3 विषय, कक्षा 3 से 5 तक मे 4-4 विषयों एवं बालवाड़ी का अध्यापन कराना होता है। अगर कालखण्डों में बाँटकर अध्यापन कराया जाय तो प्रतिदिन पाँचों कक्षाओं में कुल 18 कालखण्ड होंगे तथा बालवाड़ी का अध्यापन कार्य, जो कभी भी सिर्फ 02 शिक्षकों से पूर्ण नहीं हो पाएंगे। इसके लिए शासन को चाहिए कि कम दर्ज संख्या वाले स्कूलों को बंद करके पास की स्कूलों में मर्ज करे लेकिन प्राथमिक शालाओं में 05 कक्षाओं के अध्यापन के लिये शिक्षकों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करे।

कम से कम प्रत्येक प्राथमिक शाला में अनिवार्य रूप से 03 शिक्षकों की पदस्थापना करे। पूर्व के सेटअप अनुसार प्रत्येक प्राथमिक शालाओं में 01 प्रधान पाठक तथा 02 सहायक शिक्षकों के पद स्वीकृत थे परन्तु अभी के युक्तियुक्तकरण में प्रत्येक प्राथमिक शाला में 01 सहायक शिक्षक का पद कम कर देना सरकार की मंशा को प्रदर्शित करता है कि हमने सभी स्कूलों के लिये शिक्षकों की पर्याप्त व्यवस्था दे दी है और हमारे छत्तीसगढ़ में छात्र शिक्षक अनुपात 1:30 है। इसमें कक्षा की संख्या एवं कालखण्डों की संख्या को सरकार द्वारा पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

इस प्रकार शिक्षकों की कमी को आनुपातिक रूप से बढ़ा चढ़ा कर पेश किए जाने एवं राष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही लूटने के अलावा और कोई चीज हासिल नहीं हो सकती। छात्रों के अधिगम स्तर में सुधार की तो इस सेटअप से बिलकुल भी उम्मीद नहीं की जा सकती। साथ ही प्रधान पाठक के पद को प्रशासनिक न मानते हुए शिक्षकीय पद माना गया है, ऐसे में एक ही परिसर में संचालित प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक शालाओं को युक्तियुक्तकरण के माध्यम से एक साथ मर्ज किया जाना है तथा समस्त अभिलेख माध्यमिक शालाओं में संधारित किये जायेंगे। इस स्थिति में माध्यमिक शाला के प्रधान पाठक के पास अभिलेखों के दुरुस्तीकरण, संधारण एवं रखरखाव का कार्य अत्यधिक बढ़ जाएगा। एक तरफ नवीन सेटअप में शिक्षकों की कमी एवं अभिलेखों के रखरखाव का कार्य, ऊपर से प्रधान पाठक का पद शिक्षकीय घोषित किया जाना, ऐसी स्थिति में बेचारा प्रधान पाठक अभिलेख संधारित करे, अध्यापन कार्य करे, कि अपने स्कूल के साथ साथ प्राथमिक शाला की अन्य व्यवस्थाओ को अपने एकदम सीमित संसाधनों के साथ पूर्ण करना सुनिश्चित करे। समग्र शिक्षा में नियमित रूप से प्रतिदिन नई नई जानकारियाँ, शासन के आदेशानुसार विभिन्न कार्यक्रमों एवं दिवसों का आयोजन, शालाओं में संचालित खेल एवं अन्य पाठ्येतर गतिविधियां, इन सभी कार्यों को समय मे पूर्ण करने हेतु शिक्षक स्टॉफ का पर्याप्त होना अत्यन्त आवश्यक है, परन्तु हमारे नीति- नियंताओं का ध्यान इस ओर बिलकुल भी नहीं जाता या शायद ध्यान देना नहीं चाहते। यदि वास्तव में शासन शासकीय शालाओं में शिक्षा गुणवत्ता चाहती है तो प्रत्येक विद्यालयों में शिक्षकों की पर्याप्त पदस्थापना एवं पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास करे। आज आत्मानन्द स्कूलों की बहुत तारीफ हो रही है, लेकिन क्यों, इस विषय पर कभी विचार किया गया है। आत्मानन्द के शिक्षक भी वही शासकीय शिक्षक हैं लेकिन आत्मानन्द विद्यालयों में प्राथमिक कक्षाओं में प्रत्येक कक्षा के लिये 01 शिक्षक के हिसाब से 05 शिक्षक तथा 01 प्रधान पाठक की पदस्थापना दी गई है, दर्ज संख्या भी प्रति कक्षा 40 निश्चित की गई है और साथ मे अन्य संसाधन भी पर्याप्त रुप से उपलब्ध कराया गया है, इसीलिए वहाँ के छात्र- छात्राओं के अधिगम स्तर में बहुत सुधार हुआ है। शासन को चाहिए कि प्रत्येक 05 से 10 किलोमीटर के रेडियस में एक सर्वसुविधायुक्त विद्यालय खोले, जिसमे शिक्षक एवं संसाधनों की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित हो, दर्ज संख्या पर्याप्त हो। किन्हीं भी स्थितियों में 100 से कम दर्ज संख्या पर विद्यालय न खोले। बल्कि 05 से 10 किलोमीटर के रेडियस में एक स्कूल बस की व्यवस्था सुनिश्चित करे, जिससे कि दूर के विद्यार्थियों को आने जाने में परेशानी न हो। आज 01 किलोमीटर में प्राथमिक शाला खोल देने के कारण किसी भी स्कूल में दर्ज संख्या पर्याप्त नहीं हो पा रही है। प्रत्येक 01 किलोमीटर में प्राथमिक शाला, 03 किलोमीटर में माध्यमिक शाला, तथा 05 किलोमीटर में हाई स्कूल/ हायर सेकेंडरी खोल देने के कारण छात्र शिक्षक अनुपात गड़बड़ा रहा है। छात्र शिक्षक अनुपात को सभी देखते हैं पर कक्षाओं एवं कालखण्डों की संख्या को कोई नहीं देखता या यूं कहें कि देखना नहीं चाहते। 10 किलोमीटर के रेडियस में 10 स्कूल बिल्डिंग, 20 शिक्षक, 10 स्वीपर, 10 रसोइया एवं सभी भवनों के रखरखाव तथा विद्यालय संचालन हेतु स्टेशनरी एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था हेतु वेतन/अनुदान में जितनी राशि शासन द्वारा खर्च हो रही है उससे कम में प्रत्येक 10 किलोमीटर में एक स्कूल बस का संचालन हो सकता है। इस प्रकार से सरकार के खर्च में बचत भी होगी, विद्यालयों में दर्ज संख्या भी पर्याप्त होगी तथा शिक्षकों की संख्या भी पर्याप्त होगी एवं संसाधन भी पर्याप्त होंगे। जिससे कि शासन द्वारा अपेक्षित शिक्षा गुणवत्ता में भी सुधार होगी।

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