---Advertisement---

शरद पूर्णिमा के दिन इस मंदिर में होती है बल पूजा, फिर दी जाती है बकरे की बली

By Khabar Khule Aam Desk

Published on:

Follow Us
Advertisement Carousel
---Advertisement---
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
AVvXsEjjUqeqoY6j6kPlpTcObKlmo YyH6lNyApSpqMjDOOvxSsTfB4uTV h6Ac24kivnlSOFDLSYtsEn0zCdsOb3 dW805d2pRO9QxSY5CE6kUzLya0PEu14V263r8Z q3aj3uKPwdHZHl6QQoTMSbir5266VqXURO4vQG2nuePJ2UcQ6GD SngkiYYqkbpA=w244 h400

नरेश राठिया की रिपोर्ट तमनार से –

रियासत कालीन देवी मां मानकेश्वरी देवी के पूजा की परंपरा कर्मागढ़ में अब भी जारी है। यहां राजघराने की कुल देवी मां की पूजा हर वर्ष शरद पूर्णिमा के दिन की जाती है।

रियासत कालीन देवी मां मानकेश्वरी देवी के पूजा की परंपरा कर्मागढ़ में अब भी जारी है। यहां राजघराने की कुल देवी मां की पूजा हर वर्ष शरद पूर्णिमा के दिन की जाती है। इस वर्ष भी शनिवार को यहां करमा महोत्सव मनाया गया और बल पूजा किया गया। जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच कर माता के चरणो में मत्था टेका और आर्शीवाद लिया। शनिवार की दोपहर तीन बजे से बल पूजा का कार्यक्रम शुरू किया गया। पूजा के बाद बैगा बीरबल सिदार के शरीर भीतर जब माता का प्रभाव हुआ, तो भक्त ने बकरों की बली दिया।

AVvXsEgDEP9JzDkQEQ w9M UtoHwJTb2 IWBkNorzinXNwPfqPB937XRXK jSeAV1OroAa4vMvgRaXEUjFjwJ6WzNVVyLaeOVwuvLo9Shvb Lr63hkgbKUeu1 VyEYAsePlsVBX5oFhEA fb79pB5e8piV OysaWVIOaaS7pvQB rRLj8IUbwgifcypVEN6S A=w400 h266


इसके बाद बैगा बकरों का रक्तपान करने लगे। इस पूरे पूजा को देखने वाले श्रद्धालुओं के रोम-रोम खड़े हो गए। दोपहर से शुरू हुई पूजा देर शाम तक चली। इसके बाद सभी भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में रायगढ़ राजपरिवार की कुलदेवी मां मानकेश्वरी देवी आज भी अपने चैतन्य रूप में विराजित हैं और माता समय-समय पर अपने भक्तों को अपनी शक्ति से अवगत कराती है।शुक्रवार की मध्यरात्रि को बैगा द्वारा गोंडवाना परंपरा के अनुरूप गुप्त रहस्यमय पूजा मंदिर में किया गया। इस दौरान राजघराने के भी सदस्य मौजूद थे। पूजा से पहले गांव में मुनादी कराई गई और किसी को भी घर से बाहर नहीं निकलने दिए जाने की परांपरा है। मान्यता है कि इस दौरान माता को प्रवेश होता है। शनिवार की दोपहर ढोल नगाड़ों और आदिवासियों के परंपरागत करमा नृत्य के बीच दोपहर से बल पूजा शुरू की गई। जिन महिलाओं को संतान प्राप्ति नहीं हो रही या अन्य संकट घेरे रही है। ऐसे श्रद्घालु माता से मनचाहा वरदान पाने के लिए यहां हजारों की संख्या में पंहुचे थे। बल पूजा शुरू होने पर घंटों तक औंधे मुंह पड़ी ये महिलाएं मन्नत मांग रही थी , इसके बाद पूजा के दौरान जब देवी बना बैगा श्रद्धालुओं को स्पर्श कर आर्शीवाद दे रहे थे। बैगा के छूने के बाद जमीन पर लेटे श्रद्धालु तत्काल खड़े हो कर दूध, माला, व जल आदि बैगा पर चढ़ा रहे थे। बल पूजा के दौरान राजघराने के सदस्य सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के श्रद्धालु यहां मौजूद थे। 


निशा पूजा की गई –

बल पूजा से पूर्व रात्रि निशा पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। जब निशा पूजन होता है उस दिन राजपरिवार से बैगा को एक अंगूठी पहनाई जाती है।यह इतनी ढीली होती है कि यह बैगा अंगुली के नाप में नहीं आती, लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन बलपूजा के दौरान वह अंगूठी बैगा के हाथों में इस कदर कस जाती है कि जैसे वह अंगूठी उन्हीं के नाप की बनाई गई हो। इससे पता चलता है कि माता का वास बैगा के शरीर में हो गया है।


रात भर डटे रहे लोग-

शनिवार को बल पूजा के बाद शाम होने पर आगे के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। गांव के घुराउ ने बताया कि रात के दौरान यहां नाटक व अन्य कार्यक्रम किया गया और इसे देखने के लिए संबंलपुरी, चुनचुना, बंगुरसिया, जुनवानी, रायगढ़, भैंसगढ़ी, हमीरपुर सहित ओडि़शा क्षेत्र से लोग आए हुए थे। जिन्होंने रात भर यहां रह कर आयोजन में शामिल हुए। 


नहीं होता दुष्प्रभाव –

ग्रामीणों ने बताया कि बैगा में माता प्रवेश करती है तो बैगा पशुबलि का रक्तपान करता है। इसका दुष्प्रभाव भी उसे माता की कृपा से नहीं पड़ता है। कई गुना रक्त पीने के बावजूद उनका स्वास्थ्य सही रहता है। बल पूजा के बाद श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का भी वितरण किया गया।


यह है मान्यता

गांव के बड़े-बुजुर्गों ने बताया कि लगभग 600 वर्ष पूर्व जब एक पराजित राजा जो हिमगीर रियासत का था उसे देश निकाला देकर बेडिय़ों से बांध कर जंगल में छोड़ दिया गया।

जंगल-जंगल भटकता वह राजा करमागढ़ में पहुंच गया। तब उन्हें देवी ने दर्शन देकर बंधन मुक्त कर दिया। इसी तरह एक घटना सन 1780 में तब हुई थी। जब ईस्ट इंडिया कंपनी, अंग्रेजों ने एक तरह के कठोर (लगान) करके लिए रायगढ़ और हिमगीर पर वसूली के लिए आक्रमण कर दिया। 

तब यह युद्घ करमागढ़ के जंगली मैदानों पर हुआ था। इसी दौरान जंगलों से मधुमक्खी व जंगली कीटों का आक्रमण मंदिर की ओर से अंग्रेजों पर हुआ। इस युद्घ में अंग्रेज पराजित होकर उन्होंने भविष्य में रायगढ़ स्टेट को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इस कारण श्रद्घालु यहां दूर-दूर से अपनी इच्छापूर्ति के लिए आते हैं और माता से मनचाहा वरदान अपनी झोली में आशीर्वाद के रूप में पाकर खुशी-खुशी वापस लौट जाते हैं।


Advertisements

Khabar Khule Aam Desk

Khabar khuleaam.com एक हिंदी न्यूज पोर्टल है ,पोर्टल में छत्तीसगढ़ राज्य की खबरें प्राथमिकता के साथ प्रकाशित की जाती है जिसमें जनहित की सूचनाएं प्रकाशित की जाती है साइड के कुछ तत्त्वों के द्वारा उपयोगकर्ता के द्वारा किसी प्रकार के फोटो वीडियो सामाग्री के लिए कोई जिम्मेदार नही स्वीकार नही होगा ,, प्रकाशित खबरों के लिए संवाददाता या खबर देने वाला स्वयं जिम्मेदार होंगे .. किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में क्षेत्रीय न्यायालय घरघोड़ा होगा ।।

---Advertisement---

Leave a Comment