बज्रदास महंत लैलूंगा से
अन्न दान का महापर्व छेरछेरा को धूमधाम के साथ मनाया जाता है छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है। इस दौरान लोग घर-घर जाकर लोग अन्न का दान माँगते हैं। वहीं गाँव के युवक युवतियों व बच्चे घर-घर जाकर अन्न दान माँगते है।
समाज के लोगो ने जागरूकता का दिया परिचय
इस वर्ष लैलूंगा जुनाडीह के मानिकपुरी पनिका समाज ने कोरोना के बढ़ते प्रकोप को ध्यान में रखते हुये छेर छेरा त्योहार पर समाज के लोगो ने अन्न दान की मांग नही करने का निर्णय लिया बच्चे और युवक युवतियों ने भी मोहल्ले में अन्न दान नही मांगा वही इस बार छेर छेरा नही मांगने को लेकर मोहल्ले में सभी समाज के लोगो ने परहेज किया ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी भी लोगो द्वारा मोहल्ले में घूम घूम कर छेरता नही मांगा गया कोरोना के प्रकोप से बचने ऐसा फैसला लिया गया हम जागरूक होंगे तो मोहल्ले जागरूक होगा मोहल्ले में सुबह से छोटे छोटे बच्चों का भीड़ जमा होता था पर इस बार सुबह से मोहल्ले में सन्नाटा रहा कई जगह छेरछेरा नही मांगने को लेकर चर्चा भी गरम रही कि जुनाडीह में इस बार छेर छेरा कियूं नही मांगा गया पर ऐसे विपरीत परिस्थितियों में लोगो इस महामारी से बचने व लोगो को सुरक्षित रहने के लिए यह त्योहार पर जागरूक क़रने फैसला लिया गया ।
धन की पवित्रता व अन्नपूर्णा देवी की पूजा घरों में बनते है व्यजंन
छत्तीसगढ़ के लोक परंपरा के अनुसार पौष महीने की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष छेरछेरा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही बच्चे, युवक व युवतियाँ हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा माँगते हैं। वहीं युवकों की टोलियाँ डंडा नृत्य कर घर-घर पहुँचती हैं। धान मिंसाई हो जाने के चलते गाँव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेर छेरा माँगने वालों को दान करते हैं।
इन्हें हर घर से धान, चावल व नकद राशि मिलती है। इस त्योहार के दस दिन पहले ही डंडा नृत्य करने वाले लोग आसपास के गाँवों में नृत्य करने जाते हैं। वहाँ उन्हें बड़ी मात्रा में धान व नगद रुपए मिल जाते हैं। इस त्योहार के दिन कामकाज पूरी तरह बंद रहता है। इस दिन लोग प्रायः गाँव छोड़कर बाहर नहीं जाते।इस दिन सभी घरों में आलू चाप,भजिया तथा अन्य व्यंजन बनाया जाता है। इसके अलावा छे र- छेरा के दिन कई लोग खीर और खिचड़ा का भंडारा रखते हैं, जिसमें हजारों लोग प्रसाद ग्रहण कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
ज्योतिष वास्तुविद के अनुसार इस दिन अन्नपूर्णा देवी की पूजा की जाती है। जो भी जातक बच्चों को अन्न का दान करते हैं, वह मृत्यु लोक के सारे बंधनों से मुक्त हो आज के दिन द्वार-द्वार पर ‘छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा’ की गूँज सुनाई देती है पौष पूर्णिमा के अवसर पर मनाए जाने वाले इस पर्व के लिए लोगों में काफी उत्साह रहता है
यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है। उत्सवधर्मिता से जुड़ा मानस लोकपर्व के माध्यम से सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए आदिकाल से संकल्पित रहा है।
मानिकपुरी समाज ने प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं सुख समृद्धि के लिये किया प्राथना
इस अवसर पर मानिकपुरी पनिका समाज जुनाडीह लैलूंगा ने सभी प्रदेश वासियों को छेर छेरा पूस पुन्नी की बधाई शुभकामनाएं दी है सभी के जीवन मे धन की बरसात हों देवी अन्नपूर्णा सभी के घरों में भरपूर भंडार रहे सभी को स्वस्थ रखें खुशहाल जीवन में के साथ मनोकामना पूरी हो।