रिषभ तिवारी की रिपोर्ट
किसी भी राज्य के विकास में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान होता है। हाल में प्रदेश के आर्थिक, सामाजिक क्षेत्रों में कई नीतिगत सुधार किये गए है, जिसके फलस्वरुप प्रदेश में तेजी से विकास दर बढ़ी है। इन विकास योजनाओं ने अन्य क्षेत्रों के साथ साथ शिक्षा व्यवस्था में भी गति प्रदान की है, लेकिन इतने विकास के बाद भी हमारे शिक्षा व्यवस्था की आधारभूत समस्याए दूर नहीं की जा सकी है। इसकी बानगी धरमजयगढ़ के चाल्हा गांव के शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय में देखने को मिली।
जहां के बच्चे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री तक का नाम नहीं जानते। यही नहीं स्कूल के बच्चे क्षेत्र के विधायक और जिले के कलेक्टर का भी नाम नहीं बता पाए। जिसके बाद स्कूल के एक शिक्षक के द्वारा सफाई पेश करते हुए कहा गया कि वे रोज बच्चों को सामान्य ज्ञान की पढ़ाई कराते हैं, बच्चा शायद डर के कारण नाम नहीं बता पा रहा है। जिसके बाद हमने उनसे कहा कि आप स्वयं एक बच्चे को बुलाइये जो यह सामान्य जानकारी बता सके। शिक्षक कोशिश करते थक गए लेकिन एक भी स्टूडेंट सामने आने के लिए तैयार नहीं हुआ। जिसके बाद स्कूल के प्रधान पाठक से इस संबंध में जानकारी के लिए उनके पास गए तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया और कैमरे से मुंह छिपाते हुए भागने लगे। आज यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है की बुनियादी सुविधाओं के नाम पर स्कूल केवल दोपहर का भोजन देने वाले केंद्र बनकर रह गए हैं। इन स्कूलों में शिक्षा के अलावा बाकी सभी कार्य पूरी जिम्मेदारी के साथ किए जाते हैं। बात करें अगर यहां की शिक्षा गुणवत्ता की तो वह भी किसी हद तक सराहनीय नहीं है। प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा पर खर्च किये जाने वाले भारी- भरकम बजट के बावजूद आखिर शिक्षा की ऐसी दुर्दशा क्यों है? इसके लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? भ्रष्ट अफसरशाही, शिक्षकों में नैतिक बोध का अभाव अथवा स्वयं समाज? गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना को साकार किये जाने और देश के भविष्य माने जाने वाले बच्चों के लिए उक्त सवालों का अब अनुत्तरित रहना जायज नहीं है।