जनजाति समाज की अमर गौरव प्रेरणा के प्रतिक शहीद वीर नारायण सिंह – राधेश्याम राठिया

By Khabar Khule Aam Desk

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घरघोड़ा में मनाया गया शहीद वीर नारायण की शहादत दिवस ।

घरघोड़ा – जनजाति समाज की गौरवशाली इतिहास में छत्तीसगढ़ के सोनाखान में जन्मे वीर नारायण सिंह ने देश के इतिहास में वो क्रांति गाथा लिखा जिसके किस्से आज अमर है यह स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों को स्वतंत्र जीवन के लिए प्रेरणा बना जिसके कारण जनजाति समाज की गौरवशाली परंपरा में देश के प्रति राष्ट्र प्रेम को दर्शाता है इन सारे विषयों पर चर्चा करते हुए धरमजगढ़ विधानसभा के भाजपा आदिवासी नेता राधेश्याम राठिया शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस पर घरघोड़ा में आयोजित कार्यक्रम में याद किया राधेश्याम राठिया ने बताया की

सत्रहवीं सदी में सोनाखान राज्य की स्थापना की गई थी। इनके पूर्वज गोंडवाना साम्राज्य के सारंगढ़ के जमींदार के वशंज थे। बाद में उन्होंने अपने आप को राजगोंड से बिंझवार आदिवासी मे परिवर्तन कर लिए। सोनाखान का प्राचीन नाम सिंहगढ़ था। कुर्रूपाट डोंगरी में युवराज नारायण सिंह के वीरगाथा का जिन्दा इतिहास दफन है। युवराज नारायण सिंह के पास एक घोड़ा था जो कि स्वामीभक्त था। वे घोड़े पर सवार होकर अपने रियासत का भ्रमण किया करत थे। भ्रमण के दौरान एक बार युवराज को किसी व्यक्ति ने जानकारी दी कि सोनाखान क्षेत्र में एक नरभक्षी शेर कुछ दिनों से आतंक मचा रहा है जिसके चलते प्रजा भयभीत है। प्रजा की सेवा करने में तत्पर नारायण सिंह ने तत्काल तलवार हाथ में लिए नरभक्षी शेर की ओर दौड़ पड़े और कुछ ही पल में शेर को ढेर कर दिए। इस प्रकार से वीर नारायण सिंह ने शेर का काम तमाम कर भयभीत प्रजा को नि:शंक बनाया। उनकी इस बहादुरी से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वीर की पदवी से सम्मानित किया। इस सम्मान के बाद से युवराज वीरनारायण सिंह बिंझवार के नाम से प्रसिद्ध हुए। शहादत दिवस कार्यक्रम में उपस्थित भाजपा के जिला मंत्री सोनू सिदार ने शहादत की अमर बलिदानी शहीद वीर नारायण को छत्तीसगढ़ के इतिहास में सबसे बड़े क्रांतिवीर के रूप में याद करते बताया की वीर योद्धा शहीद वीर नारायण ने जो लड़ाई लड़ी वह अंग्रेजी हुकूमत से त्रस्त आमजनता को मुक्ति के लिए था जिसके परिणामस्वरूप वीर नारायण के नाम का खौफ अंग्रेजों की इस क़दर थी की उनकी हत्या भी उतने क्रुरता पूर्वक अंग्रेज शासक द्वारा किया गया,

शहीद वीरनारायण सिंह का आन्दोलन जंगल कस्बों में बसे जनता की पीड़ा का उपज दी जिसके खिलाफ क्रांति ज्वाला जंगल से निकलकर गांव शहर तक लेकर जाने वाले वीर नारायण ने आजादी की रणनीति तय कर लिया था जिला मंत्री सोनू सिदार ने कहा की इतिहास को हर किसी पढ़ने जानने की आवश्यकता है और हमारे छत्तीसगढ़ प्रदेश तक स्वतंत्रता आंदोलन के शिल्पकारों के जानकारी पहुंच इस लिए इतिहास को बताते हुए वीर नारायण की जीवन की कुछ बातें रखीं अपने व्यक्तत्व में शहीद वीर नारायण के बारे में कहा कि प्रजा हितैषी का एक अन्य उदाहरण सन् 1856 में पड़ा अकाल है जिसमें नारायण सिंह ने हजारों किसानों को साथ लेकर कसडोल के जमाखोरों के गोदामों पर धावा बोलकर सारे अनाज लूट लिए व दाने-दाने को तरस रहे अपने प्रजा में बांट दिए। इस घटना की शिकायत उस समय डिप्टी कमिश्नर इलियट से की गई। वीरनारायण सिंह ने शिकायत की भनक लगते हुए कुर्रूपाट डोंगरी को अपना आश्रय बना लिया। ज्ञातव्य है कि कुर्रूपाट गोड़, बिंझवार राजाओं के देवता हैं। अंतत: ब्रिटिश सरकार ने देवरी के जमींदार जो नारायण सिंह के बहनोई थे के सहयोग से छलपूर्वक देशद्रोही व लुटेरा का बेबुनियाद आरोप लगाकर उन्हें बंदी बना लिया। 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के चौराहे वर्तमान में जयस्तंभ चौक पर बांधकर वीरनारायण सिंह को फांसी दी गई। बाद में उनके शव को तोप से उड़ा दिया गया और इस तरह से भारत के एक सच्चे देशभक्त की जीवनलीला समाप्त हो गई। उल्लेखनीय है कि गोंडवाना साम्राज्य के शेर कहे जाने वाले अमर शहीद वीरनारायण सिंह बिंझवार को राज्य का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा प्राप्त है।

शहादत दिवस कार्यक्रम में भाजपा मंडल महामंत्री राजेश पटेल, मंडल अध्यक्ष अजजा मोर्चा समय नाथ मांझी, जनपद सदस्य श्रीकांत राठिया, पिंगल बघेल पुर्व अध्यक्ष अजा मोर्चा मंडल घरघोड़ा,गजेन्द्रॊ पैकरा, मंगल राठिया, की उपस्थिति में आज नवापारा घरघोड़ा में आयोजित शहादत दिवस कार्यक्रम में सर्व प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह के छाया चित्र पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित किया गया इसके बाद शहीद वीर नारायण के जीवन को याद करते उनके विचारों को समाज हित में उपयोग कैसे लिया जा सकता है, इस पर कार्य करने की सबको जिम्मेदारी दिया गया।




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