रिषभ तिवारी की रिपोर्ट –
ग्रामीण विकास के तमाम सरकारी कवायदों के बावजूद मूलभूत सुविधाओं की मांग करते ग्रामीणों की तश्वीरें जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करती हैं। विकास खण्ड धरमजयगढ़ के ग्राम पंचायत सिसरिंगा के आश्रित ग्राम सिंधुमार के हालात विकास के दावों की पोल खोलती नज़र आती हैं। यहां के ग्रामीण इक्कीसवीं सदी में भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जिन्दगी बिताने को मजबूर हैं। यह पूरा मामला धरमजयगढ़ विकास खण्ड के सिंधुमार गांव का है। यहां के ग्रामीण बताते हैं कि दशकों से यहाँ 35 से 40 परिवार के लोग जंगल में घर बनाकर रह रहे हैं। जंगल में ही उन्हें खेती के लिए भूमि शासन से प्राप्त हुई है। उसी पर खेती कर किसी तरह वे अपना जीवन यापन कर रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण उन्हें मूलभूत सुविधाओं का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है। अभी तक इस गाँव में आवागमन के लिये सड़क भी नहीं बन पाई है। वहीं स्वच्छ पेयजल के अभाव में लोग नदी-नाले का पानी पी कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। गांव में जो बोर और हैंडपंप हैं वे भी खराब हो गए हैं। ग्रामीणों ने बताया कि यदि कोई बीमार हो जाता है तो अस्पताल लेकर जाने के लिए गांव तक एम्बुलेंस भी नहीं आ पाती है। जिसके कारण मरीज को खाट पर ढ़ोकर ले जाना पड़ता है। वहीं कई लोगों को पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल रहा है और कई घरों में शौचालय की सुविधा भी नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि बड़ी मुश्किल से गाँव में बिजली पहुंची है।
इस संबंध में धरमजयगढ़ जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. आज्ञामणि पटेल ने बताया कि स्वीकृत कार्यों के लिए जितनी राशि प्राप्त हुई है उससे अधिक का कार्य कराया गया है। अधिकांश कार्य प्रगति पर है। जल्द ही सभी लंबित निर्माण कार्यों को पूरा कर लिया जायेगा।
बहरहाल यह कहना ग़लत नहीं होगा कि विकास के सरकारी दावों के बीच अब भी क्षेत्र के कई दूरस्थ गांव के ग्रामीण विकास की बाट जोहने को मजबूर हैं।